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जितने ज्यादा सम्बन्ध उतने ही दुःख और जितना एकांत उतना ही सुख।

आज वर्तमान समय में प्रायः यह देखा जा सकता है की हम अपने मूल स्वरूप को भूलकर इस नश्वर जगत को ही तादात्मय कर है जो की सिर्फ दुःख और पीड़ा ही देता है। 

हमें इस बात का बोध होना चाहिए की ईश्वर ने जो शृष्टी बनायीं हमें उस से दुःख और पीड़ा नहीं होती, परन्तु हमने जो संसार रचा है वही हमें पीड़ा देता है। हमने जो सम्बन्ध बनाया है और उस सम्बन्ध में जो अनगिनत जो आशाएँ, अपेक्षाये जोड़ी वास्तव में यही सब हमारे उदाशीनता का कारण है। 

जितने ज्यादा सम्बन्ध उतने ही दुःख और जितना एकांत उतना ही सुख। 

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